मराठों के विरुद्ध नरुका योद्धाओं का संघर्ष

 मराठों के विरुद्ध नरुका योद्धाओं का संघर्ष

(18वीं शताब्दी में जयपुर और नरुका राजपूतों द्वारा मराठों का प्रतिरोध)

भूमिका

18वीं शताब्दी के मध्य में मराठों का प्रभाव उत्तरी भारत में बढ़ने लगा। उन्होंने राजस्थान के राजपूत राज्यों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया और भारी कर (चौथ व सरदेशमुखी) वसूलने लगे। इसी दौर में जयपुर राज्य और विशेष रूप से नरुका राजपूतों ने मराठों के खिलाफ वीरतापूर्ण संघर्ष किया।


मराठों से संघर्ष की प्रमुख घटनाएँ

1. मराठों का जयपुर राज्य पर आक्रमण (1740-1760 के दशक)

  • मराठा पेशवा बाजीराव और बाद में माधवराव के सेनापतियों ने राजस्थान पर अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास किया।
  • जयपुर के महाराजा ईश्वरी सिंह और बाद में महाराजा माधो सिंह प्रथम ने मराठों के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए कई सैन्य प्रयास किए।
  • इसी दौरान नरुका राजपूतों ने जयपुर की सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मराठों के विरुद्ध वीरतापूर्वक लड़े।

2. 1750-1760: नारायण सिंह नरुका और मराठों से संघर्ष

  • नारायण सिंह नरुका जयपुर राज्य के एक प्रमुख सेनापति थे।
  • उन्होंने जयपुर की सीमा पर मराठों के हमलों को रोकने के लिए अपनी सेना के साथ कई युद्ध लड़े।
  • इन संघर्षों में नरुका योद्धाओं ने अपनी रणनीतिक चतुराई और युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया।

3. 1787 – लावा युद्ध (जयपुर बनाम मराठा सेना)

  • लावा (जयपुर के पास) में एक बड़ा युद्ध हुआ, जिसमें नरुका योद्धाओं ने मराठा सेनाओं का जमकर प्रतिरोध किया।
  • इस युद्ध में नरुका सरदारों ने बहादुरी से लड़ते हुए मराठों को भारी क्षति पहुँचाई।
  • युद्ध के दौरान कई प्रमुख नरुका योद्धाओं ने बलिदान दिया, लेकिन मराठों की बढ़ती शक्ति के कारण जयपुर को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

4. 1790 – तोडा नरुका की लड़ाई

  • तोडा नरुका (वर्तमान टोंक जिले में) नरुका राजपूतों का गढ़ था।
  • मराठा सेना ने इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास किया।
  • नरुका योद्धाओं ने स्थानीय राजपूतों के साथ मिलकर मराठों का डटकर मुकाबला किया।
  • कई महीनों तक चले संघर्ष के बाद, जयपुर राज्य और नरुका योद्धाओं ने मराठों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

नरुका योद्धाओं की रणनीति और वीरता

  • नरुका योद्धा छापामार युद्ध में माहिर थे और मराठों की सैन्य चालों को बखूबी समझते थे।
  • युद्ध में घुड़सवार सेना और धनुर्धारियों का प्रयोग किया गया, जो मराठों के विरुद्ध कारगर साबित हुआ।
  • मराठा घुड़सवार सेना के खिलाफ नरुका योद्धाओं ने दुर्गों और पहाड़ी किलों से युद्ध किया, जिससे मराठों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

संघर्ष के परिणाम

  1. जयपुर राज्य को भारी क्षति हुई – मराठों के निरंतर हमलों के कारण जयपुर को आर्थिक और सैन्य क्षति झेलनी पड़ी।
  2. नरुका योद्धाओं की वीरता अमर हुई – इन संघर्षों में नरुका योद्धाओं की बहादुरी ने राजस्थान के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जोड़ा।
  3. मराठों का प्रभाव बढ़ा लेकिन पूरी तरह विजय नहीं मिली – जयपुर और नरुका राजपूतों के कड़े प्रतिरोध के कारण मराठों को पूर्ण रूप से राजस्थान पर कब्जा नहीं मिल सका।

निष्कर्ष

18वीं शताब्दी में नरुका राजपूतों ने जयपुर राज्य की रक्षा के लिए मराठों के खिलाफ कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े। उन्होंने अपने शौर्य और बलिदान से राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया।

Comments

Popular posts from this blog

मुगलों के खिलाफ नरुका राजपूतों का संघर्ष

नरुका राजपूतों की उत्पत्ति

नरुका राजपूत वंश का इतिहास