मुगलों के खिलाफ नरुका राजपूतों का संघर्ष
1. मुगलों के खिलाफ नरुका राजपूतों का संघर्ष
(मुगल साम्राज्य के अधीन और विरोध)
16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान, आमेर (जयपुर) राज्य को मुगल सम्राट अकबर और उसके उत्तराधिकारियों के अधीन आना पड़ा। हालांकि, नरुका राजपूतों ने कई बार मुगलों के बढ़ते प्रभाव का विरोध किया।
- जयपुर के कछवाहा राजाओं की ओर से नरुका योद्धाओं ने कई मुगल अभियानों में भाग लिया, लेकिन कई बार उन्होंने मुगलों की सत्ता का प्रतिरोध भी किया।
- नरुका राजपूतों ने औरंगजेब की नीतियों के खिलाफ जयपुर राज्य के अन्य राजपूत योद्धाओं के साथ विद्रोह किया।
- जब औरंगजेब ने राजपूताने पर कठोर शासन लागू किया, तो नरुका सरदारों ने मराठों और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया।
2. अफगानों और रोहिल्लों के खिलाफ युद्ध
18वीं शताब्दी में, राजस्थान और जयपुर राज्य को अफगानों और रोहिल्ला पठानों के हमलों का सामना करना पड़ा।
(1750-1760 के दशक में अफगानों के खिलाफ संघर्ष)
- जयपुर राज्य ने अफगान आक्रमणकारियों के विरुद्ध कई युद्ध लड़े।
- नरुका राजपूतों ने अफगानों को जयपुर की सीमाओं में प्रवेश करने से रोकने के लिए कड़ा प्रतिरोध किया।
- इस संघर्ष में नरुका योद्धाओं ने पहाड़ी दुर्गों और किलों से युद्ध करते हुए अफगानों को भारी क्षति पहुँचाई।
(1767: रोहिल्ला अफगानों के विरुद्ध युद्ध)
- जब नजीब-उद-दौला और रोहिल्ला अफगानों ने राजस्थान पर दबाव बनाना शुरू किया, तब नरुका योद्धाओं ने जयपुर सेना का नेतृत्व किया और कई निर्णायक युद्ध लड़े।
- नरुका सरदारों ने अपने रणकौशल और वीरता से जयपुर राज्य की सीमाओं की रक्षा की।
3. टोंक और मालवा क्षेत्र में पठानों के विरुद्ध युद्ध
19वीं शताब्दी में, जयपुर राज्य के नरुका राजपूतों ने टोंक के नवाब और मालवा क्षेत्र में पठानों के खिलाफ कई संघर्ष किए।
- टोंक के नवाब अमीर खान, जो एक प्रमुख पठान योद्धा थे, ने राजस्थान में अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयास किया।
- नरुका राजपूतों ने जयपुर राज्य की ओर से टोंक की बढ़ती शक्ति का मुकाबला किया और कई अभियानों में भाग लिया।
- इस संघर्ष में नरुका योद्धाओं ने अपने घुड़सवार दस्तों और सैन्य रणनीति के माध्यम से पठानों के बढ़ते प्रभाव को रोकने में योगदान दिया।
4. अंग्रेजों के साथ मुस्लिम सत्ताओं के विरुद्ध संघर्ष
- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, नरुका राजपूतों का झुकाव ब्रिटिशों की ओर था, क्योंकि जयपुर राज्य अंग्रेजों से संधि कर चुका था।
- इस दौरान, नरुका योद्धाओं ने ब्रिटिश सेना के साथ मिलकर झांसी, दिल्ली और मेरठ में मुस्लिम विद्रोही नेताओं के विरुद्ध अभियानों में भाग लिया।
- हालांकि, इस समय कुछ नरुका सरदारों ने स्वतंत्रता संग्रामियों का भी समर्थन किया और ब्रिटिश व मुस्लिम सेनाओं दोनों के खिलाफ विद्रोह किया।
निष्कर्ष
नरुका राजपूतों का इतिहास वीरता, शौर्य और संघर्ष से भरा हुआ है। उन्होंने मुगलों, अफगानों, पठानों और मराठों के खिलाफ युद्ध लड़े और जयपुर राज्य की रक्षा के लिए कई बलिदान दिए।
मुख्य बिंदु:
✅ नरुका राजपूतों ने मुगलों के अधीन रहते हुए भी कई बार विद्रोह किया।
✅ अफगानों और रोहिल्ला पठानों के आक्रमणों को रोकने में अहम भूमिका निभाई।
✅ टोंक के नवाब और मालवा क्षेत्र के मुस्लिम सरदारों के खिलाफ कई युद्ध लड़े।
✅ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश सेना के साथ व मुस्लिम सत्ताओं के विरुद्ध लड़े।
नरुका राजपूतों के इन संघर्षों ने राजस्थान के इतिहास में उनके शौर्य और पराक्रम की अमिट छाप छोड़ी। 🚩🔥
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